शेर-ओ-शायरी

फिराक गोरखपुरी (Firaq Gorakhpuri)

आज कैसी हवा चली ऐ 'फिराक',
आख बेइख्तियार भर आई।

-फिराक गोरखपुरी


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कहाँ वह खल्वतें दिन-रात की और अब यह आलम है,
कि जब मिलते हैं दिल कहता है, कोई तीसरा होता।

-फिराक गोरखपुरी


1. खल्वतें - एकान्त, जहाँ दूसरा न हो, तन्हाई 2.आलम - हालत, दशा, स्थिति


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अपना गम किस तरह से बयान करूँ,
आग लग जायेगी इस जमाने में।

-फिराक गोरखपुरी


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इस दौर में जिन्दगी बशर की,
बीमार की रात हो गयी है।

-'फिराक' गोरखपुरी


1. बशर - मनुष्य, मानव, आदमी