इक न इक जुल्मत से जब
वाबस्ता रहना है 'जोश',
जिन्दगी पर साया-ए-जुल्फे-परीशाँ क्यों न हो।
-जोश मलीहाबादी
1.जुल्मत
- अंधियारा, अंधेरा, अंधकार, तिमिर 2. वाबस्ता
- जुड़ा रहना 3.साया -ए-जुल्फे-परीशाँ
- बिखरी जुल्फों का साया