शेर-ओ-शायरी

जोश मलीहाबादी (Josh Malihabadi)

इक न इक जुल्मत से जब वाबस्ता रहना है 'जोश',
जिन्दगी पर साया-ए-जुल्फे-परीशाँ क्यों न हो।

-जोश मलीहाबादी


1.जुल्मत - अंधियारा, अंधेरा, अंधकार, तिमिर 2. वाबस्ता - जुड़ा रहना 3.साया -ए-जुल्फे-परीशाँ - बिखरी जुल्फों का साया