अब करके फरामोश तो नाशाद करोगे,
पर हम जो न होंगे तो बहुत याद करोंगे।
-मीरतकी मीर
1.
फरामोश
- भूलना 2. नाशाद
- अप्रसन्न, दुखी
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आग थे इब्तिदा- ए - इश्क में हम,
अब जो हैं खाक, इन्तिहा है यह।
-मीरतकी मीर
1. इब्तिदा
- सहसा, बेतहाशा, जिस पर इख्तियार न हो
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जिस जगह खसोखार के देर लगे हैं,
याँ हमने इन्हीं आँखों से देखी है बहारें।
-मीरतकी मीर
1.
खसोखार
- घासफूस और कांटों के
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आँखों से हाल पूछा दिल का,
एक बूंद टपक पड़ी लहू की।
- मीरतकी 'मीर'