शेर-ओ-शायरी

मीरतकी मीर  (Mirtaqi Mir)

अब करके फरामोश तो नाशाद करोगे,
पर हम जो न होंगे तो बहुत याद करोंगे।

-मीरतकी मीर


1. फरामोश - भूलना 2. नाशाद - अप्रसन्न, दुखी
 

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आग थे इब्तिदा- ए - इश्क में हम,
अब जो हैं खाक, इन्तिहा है यह।

-मीरतकी मीर


1. इब्तिदा - सहसा, बेतहाशा, जिस पर इख्तियार न हो

 

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जिस जगह खसोखार के देर लगे हैं,
याँ हमने इन्हीं आँखों से देखी है बहारें।

-मीरतकी मीर


1. खसोखार - घासफूस और कांटों के

 

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आँखों से हाल पूछा दिल का,
एक बूंद टपक पड़ी लहू की।

- मीरतकी 'मीर'