देखो न आंखें भरकर किसी के तरफ कभी,
तुमको खबर नहीं जो तुम्हारी नजर में हैं।
-'असर' लखनवी
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देखो तो चश्मे - यार की जादूनिगाहियाँ,
हर इक को है गुमां कि मुखातिब हमीं से हैं।
-हसरत मोहानी
1.चश्मे–यार - माशूक की आँख
2.मुखातिब - सम्बोधन कर्त्ता, बोलने
वाला, वार्ता करने वाला
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नजर जिसकी तरफ
करके निगाहें फेर लेते हो,
कयामत तक उस दिल की परेशानी नहीं जाती।
-आनन्द नारायण 'मुल्ला'
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नजर में ढलके
उभरते हैं दिल के अफसाने
ये और बात है कि दुनिया नजर न पहचाने
यह बज्म देखी है मेरी निगाह ने कि जहाँ
बगैर शम्अ भी जलते रहते हैं
परवाने।
-सूफी तबस्सुम (सूफी गुलाम मुस्तफा)
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