शायर उनकी दोस्ती
का अब भी दम भरते हैं आप,
ठोकरें खाकर तो कहते हैं संभल जाते हैं लोग।
-'शायर' हिमायत अली
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शिकवा क्या करता
कि उस महफिल में कुछ ऐसा भी थे,
उम्र भर जो अपने जख्मों पर नमक छिड़का किये।
-मुईन अहसन 'जज्बी'
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शिकायत
जुल्मे-खंजर का नहीं गम है तो इतना है,
जुबाने - गैर से जो मौत का पैगाम आया है।
-'साकिब' लखनवी
1.जुल्मे-खंजर - जुल्म की तलवार
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सहारा न देती
अगर मौजे-तूफां,
डुबो ही दिया था हमें नाखुदा ने।
-मकीन अहसन कलीम
1. नाखुदा - माल्लाह ,कर्णधार
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