हमने इक शाम चरागों से सजा रखी है,
शर्त लोगों ने हवाओं से लगा रखी है।
*****
जो रौशनी में खड़े
हैं उन्हें मालूम नहीं,
हवा चले तो चरागों की जिन्दगी क्या है।
*****
न थे चराग तो इक
चाँदनी सी फैली थी,
जले चराग तो अब घर में रौशनी कम है।
-सहबा इटावी
*****
चरागों
को आंखों में महफूज रखना,
बड़ी दूर तक रात ही रात होगी।
मुसाफिर हो तुम भी, मुसाफिर हैं हम भी
किसी मोड़ पर, फिर मुलाकात होगी
बशीर बद्र
*****
इन्सान ने
महरोमाह की राहें तो देखली,
खुद उसकी अंजुमन में चरागाँ न हो सका।
1.महरोमाह –
सूरज-चांद- 2.अंजुमन -
महफिल 3.चरागाँ -
जलते हुए
चरागों की कतारें,, रोशनी, प्रकाश
*****