मुझको ही तलब का
ढब नहीं आया,
वरना ऐ दोस्त तेरे पास क्या नहीं था?
-नदीम कासिमी
1तलब- (i) माँगना, याचना, तकाजा (ii)
इच्छा, ख्वाहिश, चाह
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मेरे सकूते - यास पै इतना न हो मलूल,
मुझको खुदा न ख्वास्ता तुमसे गिला नहीं।
-फिराक गोरखपुरी
1.सकूते - यास - निराशा से उत्पन्न
खामोशी 2. मलूल - उदास, खिन्न,
दुखी 3.खुदा
न ख्वास्ता
- खुदा न करे,
ईश्वर ऐसा न करे
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मेहरबानी को मुहब्बत नहीं कहते ऐ दोस्त,
आह! अब मुझसे रंजिशे-बेजा भी नहीं।
-फिराक गोरखपुरी
1.रंजिश- मनमुटाव, मनोमालिन्य (ii)
नाराजगी, अप्रसन्नता, खफगी
2. बेजा - अनुचित या असंगत
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यह कहाँ की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त़ नासेह,
कोई चारासाज होता कोई गमगुसार होता।
-मिर्जा
गालिब
1.नासेह -
नसीहत करने वाला, उपदेश देनेवाला, सदुपदेशक
2.चारासाज - चिकित्सक, उपचारक, तबीब(यानी दर्द का इलाज करने वाला)3.गमगुसार - हमदर्द, गमख्वार, दर्द बांटने वाला
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