इन्सान का लहू
पीना यह रस्म आम है,
अंगूर की शराब का पीना हराम है।
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उन
गुलों से तो कांटे अच्छे,
जिनसे होती है तौहीने- गुलशन।
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एक शख्स मिला था कड़ी धूप में मुझे,
पानी की आरजू में लहू बेचता हुआ।
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ऐ आसमान तेरे
खुदा का नहीं खौफ,
डरते हैं ऐ जमीं तेरे आदमी से हम ।
-जोश मलीहाबावी
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