शेर-ओ-शायरी

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गैरों की बात छोड़िए गैरों से क्या मिला,
अपनों ने क्या दिया हमें, अपनों से क्या मिला।
 

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घटे अगर तो बस इक मुश्ते-खाक है इन्सां,
बढ़े अगर तो वुसअते-कौनेन में समा न सके।
-जिगर मुरादाबादी


1.मुश्ते-खाक - (i) मुट्ठी भर खाक (धूल) (ii) मनुष्य, आदमी

2.वुसअते-कौनेन - दोनों जहाँ की विशालता

 

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जब-जब इसे सोचा है, दिल थाम लिया मैंने,
इन्सान के हाथों से जो इन्सान पै गुजरी है।

-फिराक गोरखपुरी
 

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जब डूब रहा था कोई, कोईभी न था साहिल पै,
इक भीड़ थी साहिल पर, जब डूब गया था कोई।


1. साहिल - किनारा, तट

 

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