आये तो यूँ कि
जैसे हमेशा थे मेहरबाँ,
भूले तो यूँ कि जैसे कभी आश्ना न थे।
-फैज अहमद फैज
1.आश्ना -(i) मित्र, दोस्त (ii) परिचित,
जानकार, वाकिफ
*****
इन्तिहा-ए-करम वह है कि जहाँ,
बेगुनाही गुनाह बन जाये।
-दिल शाहजहांपुरी
1.इन्तिहा - (i) आखिरी हद, छोर (ii)
पराकाष्ठा, चरम सीमा (iii) अत्यधिक, बहुत जियादा 2.करम -
दया, कृपा, मेहरबानी
*****
खिजाँ के दौर
में उस पर बहार आ जाये,
तेरी निगाह को जिस पर भी प्यार आ जाये।
जो आप की इनायत हो तो मजाल कहाँ,
मेरे करीब गमे - रोजगर आ जाये।
-नसीम मजहर
1.खिजाँ - पतझड़ की ऋतु
*****
जिन्दगी आप
की ही नवाजिश है,
वरना हम मर गये होते।
-अब्दुल हमीद अदम
1.नवाजिश- कृपा, इनायत
*****