आंखों ने
जरे-जर्रे पर सिज्दे लुटाये हैं,
क्या जाने, जा छुपा मेरा पर्दानशीं कहाँ।
-अख्तर शीरानी
1.पर्दानशीं - पर्दे में रहने वाली
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आने में सदा देर लगाते ही रहे तुम,
जाते रहे हम जान से आते ही रहे तुम।
-रासिख अजीमाबादी
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इक मैं कि
इन्तिजार में घड़ियाँ गिना करूँ,
इक तुम कि मुझसे आंख चुराकर चले गये।
-जोश मल्सियानी
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इन्तिजारे-फस्ले-गुल में खो चुके आंखों के नूर
और बहारे-बाग लेती ही नहीं आने का नाम।
1.फस्ले-गुल - बहार का मौसम, वसन्त ऋतु
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