इस अंजुमन में
आकर राहत नसीब किसको,
परवाना भी जलेगा और श्म्मा भी जलेगी,
जन्नत बना सकेगा हरगिज न कोई इसको,
दुनिया यूँ ही चली है 'अकबर' यूँ ही चलेगी।
-अकबर इलाहाबादी
1.अंजुमन - महफिल, बज्म
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इन्सान ने
महरोमाह की राहें तो देखली,
खुद उसकी अंजुमन में चरागाँ न हो सका।
1.महरोमाह –
सूरज-चांद 2.अंजुमन -
महफिल
3.चरागाँ - रोशनी, प्रकाश, जलते हुए
चरागों की कतारें , दीपावली
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उनकी ही बज्म
सही पै कहाँ का है दस्तूर,
इधर को देखना, देना उधर को पैमाने।
-अमन लखनवी
1.बज्म - महफिल
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कहीं धब्बा न
लग जाये तेरी बंदानवाजी पर,
मुझे भी देख मुद्दत से तेरी महफिल में रहते है।
-'आजाद' बारानवी
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