कहाँ का वस्ल
तन्हाई ने शायद भेष बदला है,
तेरे दम भर को आ जाने को भी हम क्या समझते हैं।
-'फिराक' गोरखपुरी
1.वस्ल
- मिलन, विसाल
*****
खुश होते
हैं पर वस्ल में यूं मर नहीं जाते,
आई शबे-हिज्रां की तमन्ना मेरे आगे।
-मिर्जा गालिब
1.वस्ल
- मिलन 2.शबे-हिज्रां
- जुदाई की रात
*****
जीना मरना हिज्र के बीमार का क्या चीज है,
इक तेरे आने का नाम, इक तेरे जाने का नाम।
-अजीज बीकानेरी
1.हिज्र - वियोग, विरह
*****
तुमको पाकर भी न कम हो सकी बेताबिए-दिल,
इतना आसान तेरे इश्क का गम था भी कहाँ।
-फिराक गोरखपुरी
1.बेताबिए-दिल - दिल की बेचैनी या
बेकरारी
*****