मायूसियों का दिल में वो आलम दमे-विद्अ,
बुझते हुए चराग की लौ जैसे थरथराए।
-अंदलीब शादानी
1.दमे-विद्अ - बिछुड़ते समय
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मालूम थी तेरी मजबूरियाँ मगर,
तेरे बगैर नींद न आई तमाम रात।
-माइल नक्वी
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मिट चले मेरी उम्मीदों की तरह हर्फ
मगर,
आज तक तेरे खतों से तेरी खुशबू नहीं गई।
-अख्तर शीरानी
1.हर्फ - शब्द, अक्षर
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मिटा दे अपनी हस्ती को गर कुछ मर्तबा चाहिए
कि दाना खाक में मिलकर, गुले-गुलजार होता है।
-मोहम्मद इकबाल
1.मर्तबा - (i) प्रतिष्ठा, इज्जत
(ii) पद, दर्जा, श्रेणी
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