शेर-ओ-शायरी

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मुहब्बत तो नहीं, नहीं मालूम क्या है,
अकीदत आप से बेइन्तिहा है।

-अब्दुल हमीद 'अदम'


1.अकीदत - श्रद्धा,आस्था,भरोसा,एतबार

 

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मुहब्बत में कदम रखते ही गुम होना पड़ा मुझको,
निकल आईं हजारों मंजिलें इक-इक मंजिल से।
-जिगर मुरादाबादी
 

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मुहब्बत में गिरापाँ हो न इतना खौफे-रहजन से,
जो इस रस्ते में लुट जायें, बड़ी तकदीर वाले हैं ।
-जोश मल्सियानी


1.गिरापाँ - आगे न बढ़ना 2.रहजन - लुटेरा, रास्ते में पथिकों

को लूटने वाला (यानी माशूक प्रेमिका)

 

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मुहब्बत में नहीं है फर्क जीने और मरने का,
उसी को देखकर जीते है जिस काफिर पै दम निकला।
-मिर्जा गालिब


1.काफिर - बेवफा महबूबा

 

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