सितम पर सितम
कर रहे हैं वह मुझ पर,
मुझे शायद अपना समझने लगे हैं।
-आनन्द नारायण 'मुल्ला'
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सितम है यह जौके-परफिशानी, कहीं बुझ न जाये शम्ए-महफिल,
कोई पतंगों से जाके कह दे कि यह हवस है, वफा नहीं है।
1.जौक
- (i)
लुत्फ,
आनन्द
(ii)
स्वाद,
मजा
(iii)
रूचि,
शौक
2.परफिशानी
- पर
फड़फड़ाना
(जलने से उत्पन्न दर्द के कारण )
3.हवस
-
लोभ,
लालच
4.वफा
-
भक्ति,
वफादारी,
स्वामी
या
मित्र
के
साथ
तन,मन,धन
से
निबाहना
और
कड़
से
कड़े
समय
में
उसका
साथ
देना।
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सुकूने-दिल
नहीं जिस वक्त से इस महफिल में आये हैं,
जरा-सी चीज घबराहट में क्या जाने कहाँ रख दी।
-आर्जू लखनवी
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सुना है फिर
वह सुनने आ रहे हैं दास्ताँ मेरी,
इलाही आज तो रंगे-असर लाये जुबाँ मेरी।
-अलम मजफ्फरनगरी
1.इलाही - हे खुदा
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