अपनी हालत का
खुद एहसास नहीं है हमको,
मैंने औरों से सुना है कि, परीशां हूँ मैं।
-आसी उल्दानी
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क्या आ गया खयाल
दिले - बेकरार में,
खुद आशियाँ को आग लगा दी, बहार में।
-जिगर मुरादाबादी
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कौम का गम लेकर दिल का यह आलम हुआ,
याद भी आती नहीं, अपनी परीशानी मुझे।
-चकबस्त लखनवी
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खिजां के बाद गुलशन में बहार आई तो है
लेकिन,
उड़ा जाता है क्यों अहले-चमन का रंग क्या कहिए।
-रविश सिद्दकी
1.खिजां - पतझड़ ऋतु 2.अहले-चमन
- चमन वालों
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परीशां हाल हैं लेकिन हमें है
पासे-खुद्दारी,
हमारा सर किसी के आस्तां पर खम नहीं होता।
-शंकर जौधपुरी
1.पास - शील, संकोच, लिहाज
2.आस्तां -चौखट, दहलीज
3.खम - झुकना
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