दुनिया के रंजो-गम से जब फुर्सत न मिल
सकी,
आखिर को थक के सो गये कुंजे-मजार में।
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दुनिया में हूं दुनिया का तलबगार नहीं
हूँ ,
बाज़ार से गुजरा हूँ खरीदार नहीं हूँ,
जिंदा हूँ मगर ज़ीस्त की लज्ज़त नहीं बाकी,
हरचंद होश में हूँ , होशियार नहीं हूँ इ
-अकबर इलाहाबादी
1.तलबगार - ख्वाहिशमंद, मुश्ताक, इच्छुक, अभिलाषी 2.जीस्त - जिंदगी
3.होशियार - सचेत, हवास में
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देखने के हैं सब, ये दुनिया के मेले,
मरी बज्म में हम रहे हैं अकेले।
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दैर नहीं, हरम नहीं, दर नहीं, आस्ताँ नहीं,
बैठे हैं रहगुजर पै हम, कोई हमें उठाये क्यों?
-मिर्जा 'गालिब'
1.दैर- बुतखान,,
मंदिर 2 हरम-
काबा या खुदा का घर। 3.दर-दरवाजा
4.आस्ताँ-चौखट,
दहलीज। 4.रहगुजर-रास्ता, पथ
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दो गुल कफस में रखके न सैयाद दे फरेब,
देखा ही जैसे हमने नहीं आशियाँ कभी।
-आनन्द नारायण 'मुल्ला'
1.गुल-फूल 2.कफस-पिंजड़ा।3.सैयाद-बहेलिया,
चिड़ीमार
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