शेर-ओ-शायरी

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हम कारवाँ के साथ हैं लेकिन है इस तरह,
जैसे बिछड़ गये हों किसी कारवाँ से हम।

-जौहर कोटवी

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हम न आए फिर चमन में लौटकर,
मौसमे-गुल बार- बार आता रहा।

 

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हम वहाँ हैं जहाँ से हमको भी, कुछ हमारी खबर नहीं आती,
मरते हैं आरजू में मरने की, मौत आती है पर नहीं आती।

-मिर्जा 'गालिब'


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हमको फसना था कफस में क्या गिला सैयाद का,

बस तरसते ही रहे है आब और दाने को हम।
-नजीर अकबराबादी

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हयात एक मुस्तिकल गम के सिवा कुछ भी नहीं शायद,
खुशी भी याद आती है तो आंसूँ बनके आती है।


1.हयात-जिन्दगी 2. मुस्तिकल- (i) चिरस्थायी, पाइदार (ii) अटल, दृढ़, (iii) निरंतर, लगातार। (iv) स्थायी


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