अपनी किस्मत हूँ उलझता ही चला जाता हूँ
मैं,
तेरी तकदीर नहीं हूँ कि संवरता जाऊँ।
-'मख्मूर' सईदी
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अर्थियाँ सबकी निकलती हैं घरों से लेकिन,
रोज घर आता हूँ मैं अपना जनाजा लेकर।
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आके पत्थर तो मेरे सहन में दो चार गिरे,
जितने उस पेड़ पै फल थे, पसे-दीवार गिरे।
1.सहन -
आँगन, अँगऩाई 2. पसे-दीवार -
दीवार के पीछे
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आये भी लोग, गये भी, उठ भी खड़े हुए,
मैं जा ही देखता तेरी महफिल में रह गया।
-यगाना चंगेजी
1.जा - स्थान, जगह
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