शेर-ओ-शायरी

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 'अख्तर' यह गम के दिन भी गुजर जायेंगे यूं ही,
जैसे वह राहतों के जमाने गुजर गए।
-'अख्तर' अंसारी

 

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अभी आस टूटी नहीं है खुशी की,
अभी गम उठाने को जी चाहता है।
तबस्सुम हो जिसमें निहा जिन्दगी का
वह आंसू बहाने को जी चाहता है।

-'अदीब' मालीगांवी


1.तबस्सुम - मुस्कान, मुस्कुराहट 2. निहा - छुपा हुआ


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आज तारीकिए-माहौल से दम घुटता है
कल खुदा चाहेगा 'तालिब' तो सहर भी होगी।
-'तालिब' बदेहलवी


1.तारीकिए-माहौल - माहौल का अंधेरापन 2. सहर - सुबह, सबेरा

 

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आज कांटें हैं अगर तेरे मुकद्दर में तो क्या,
कल तेरा भर जाएगा फूलों से दामन गम न कर।
-'निहाल' सेहरारवी

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