कल अपने हाथ
किसी हादसे में खो बैठा,
वही आदमी जो निहत्थों पै वार करता था।
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कल जो उठते थे बिठाने के लिये,
आज बैठे हैं उठाने के लिये।
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कहाँ वह खल्वतें
दिन-रात की और अब यह आलम है,
कि जब मिलते हैं दिल कहता है, कोई तीसरा होता।
-फिराक गोरखपुरी
1.खल्वत- एकान्त, जहाँ दूसरा न हो,
तन्हाई
2. आलम - (i) हालत, दशा, स्थिति,(ii)संसार,दुनिया
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गये दिन की तनहा था मैं अंजुमन में,
यहाँ अब मेरे राजदाँ और भी हैं।
1.अंजुमन -
महफिल, बज्म 2. राजदाँ -
भेद जानने वाला, घनिष्ट मित्र
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