शेर-ओ-शायरी

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जिसे छोड़कर कारवाँ बढ़ गया था,
वही गर्द अब कारवाँ हो रही है।

-नैयर अकबराबादी


1. गर्द - धूल, रज।

 

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जो रौशनी में खड़े हैं वह जानते नहीं,
हवा चले तो चरागों की जिन्दगी क्या है?


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टिका न वक्त के मीनार पर चराग कोई,
न जाने बुझ गये कितने सिकन्दरों के चराग।
 

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तुम्हारी, गैर की, नासेह की अब सबकी सुनते हैं,
किसी की हम नहीं सुनते थे वो भी इक जमाना था।
-शौक किदवइ


1.नासेह - नसीहत करने वाला सदुपदेशक, प्रेम-त्याग का उपदेश देने वाला।


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