शेर-ओ-शायरी

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थीं जो कल तक कश्तिए-उम्मीद को बांधे हुए,
रूख बदलकर आज वह मौजें भी तूफां हो गईं।
-शफक टौंकी


1.कश्तिए-उम्मीद - उम्मीद की नौका।

 

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न इतराइए देर लगती है क्या,
जमाने को करवट बदलते हुए।


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फर्शे-मखमलपर भी मुश्किल से जिन्हें आता था ख्वाब,
खाक पर सोते हैं अब वह पाँव फैलाये हुए।
-जफर


1. ख्वाब - नींद

 

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फूलों से जो खेला करते थे, दर-दर की ठोकर खाते हैं,
जीने की तमन्ना थी जिनको,अब जीने से घबराते हैं।
-मंजूर सिद्दकी अकबराबादी

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