जिन्दगी मिलती
रहे मर-मर के मुझको लाख बार,
और मैं होता रहूँ हर बार कुर्बाने - वतन।
-बिस्मिल
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कौम का गम लेकर दिल का यह आलम हुआ,
याद भी आती नहीं, अपनी परीशानी मुझे।
-चकबस्त लखनवी
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जब चुप रहेगी
जुबाने-खंजर,
लहू पुकारेगा आस्तीनों का।
-अकबर
इलाहाबादी
1.आस्तीन - बांह
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शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले,
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशाँ होगा।
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