आदमियों से भरी
है यह सारी दुनिया मगर,
आदमी को आदमी होता नहीं है दस्तयाब ।
-फैज अहमद फैज
1.दस्तयाब - उपलब्ध, प्राप्त
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आदमी हैं
शुमार से बाहर,
कहत है फिर भी आदमीयत की।
-जोश मलसीयानी
1.शुमार - गिनती, गणना 2. कहत -
कमी, अभाव
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आराम के थे साथी क्या - क्या
जब वक्त पड़ा तो कोई नहीं,
सब दोस्त हैं अपने मतलब के
दुनिया में किसी का कोई नहीं।
-आर्जू लखनवी
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