शेर-ओ-शायरी

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अगर कांटा निकल जाये चमन से
तो फूलों का निगहबाँ कौन होगा


1.निगहबाँ - संरक्षक, मुहाफ़िज़,देख-रेख करने वाला

 

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अगरपी लें तो उड़तीहै सितारां से भी कुछ आगे,
वगरना जिन्दगी जेरे - जमीं मालूम होती है।


1.जेरे-जमीं - जमीन के नीचे
 

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अपने ही दिल के आग में आखिर पिघल गई,
शम्ए-हयात मौत के सांचे में ढल गई।
 

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अमल से जिन्दगी बनती है, जन्नत भी, जहन्नुम भी,
यह खाकी अपनी फितरत से न नूरी है, न नारी है।
-मोहम्मद इकबाल


1.अमल - कार्य, कर्म 2.खाकी - मिट्टी का पुतला

3.नूरी - स्वर्ग के योग्य 4.नारी - नरक के योग्य

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