वह गुल
ताजा होंगे,
जो मुर्झा गए हैं
छटेंगे यह बादल भी जो छा गए हैं।
वह संभलेंगे गेसू जो बलखा गए हैं,
बहार आ रही है,
खिजां के सहारे।
1.खिजां
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पतझड़ की ऋतु
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वह दौलत जिसका दुनिया ने मसर्रत नाम रखा है,
तेरे जलवों के दामाने-नजर में भीक होती है।
1.मसर्रत
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आनन्द,
खुशी
2.दामाने-नजर
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नजर के आँचल में
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हमारे जमाने का दस्तूर यह है,
वही जीतते हैं जो खाते हैं मातें।
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हर
खिजाँ के गुबार में हमने कारवाने - बहार देखा है,
कितने पंशमीनापोश जिस्मों में रूह को तारतार देखा है।
1.खिजाँ
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पतझड़
ऋतु
2.गुबार
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धूल,
रज,
धुलि
3.कारवाने–बहार
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बहार
का काफिला
4.पंशमीनापोश
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बेहतरीन ऊनी कपड़ों में छिपे या लिपटे
5.तारतार
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टुकड़े-टुकड़े,
रेजा-रेजा
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