कू-ए-जाना की हवा से भी घबराता हूँ मैं,
क्या करूँ बेइख्तियाराना चला जाता हूँ मैं।
-मिर्जा गालिब
1.कू-ए-जाना -प्रेमिका की गली
2.बेइख्तियाराना -बेतहाशा,
सहसा, जिसे रोकना अपने बस में न हो
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कैफे -निशाते - दर्द का आलम न पूछिए,
हंस कर गुजार दी है, शबे-गम कभी-कभी।
-शकील बदायुनी
1.कैफे-निशाते–दर्द - दर्द से
प्राप्त आनन्द का नशा
2. आलम - स्थिति, दशा, हालत
3.शबे-गम - जुदाई की रात
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कोई
मुझसा मुस्तहके-रहमो-गमख्वारी नहीं,
सौ मरज है और बजाहिर कोई बीमारी नहीं।
-नजर लखनवी
1.मुस्तहके-गमख्वारी - हमदर्दी और रहम
का हकदार
2.बजाहिर -बाहर
से
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कोई मेरे दिल से
पूछे, तेरे तीरे-नीमकश को,
ये खलिश कहाँ से होती, जो जिगर के पार होती।
-मिर्जा गालिब
1.तीरे-नीमकश - वह तीर जो घाव में से
आधा खींचकर छोड़ दिया
गया हो 2.खलिश - पीड़ा, दर्द, चुभन, दर्द की टीस
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