शेर-ओ-शायरी

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इक शामे-गम को सुबहे-मसर्रत न मिल न सकी,
कितने ही आफताब चढ़े और ढल गये।
-राही शिहाबी


1.मसर्रत - खुशी, हर्ष, आनन्द 2. आफताब - सूर्

 

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इसको क्या कहिए कि हम हर हाल में जलते रहे,
दूरियों में चाँद थे, कुर्बत में परवाने हुए।
-खातिर गजनवी


1.कुर्बत - सामीप्य, नजदिकी

 

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उलझ पड़ूँ किसी के दामन से वह खार नहीं,
वह फूल हूँ जो किसी के गले का हार नहीं।
-चकबस्त लखनवी

 

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उसकी रहमत से किसे इन्कार है लेकिन,
शम्अ के तकदीर में जलना था, जलती रही।

-नदीम कासिमी

 

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