एक शख्स मिला
था कड़ी धूप में मुझे,
पानी की आरजू में लहू बेचता हुआ।
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ऐसे-वैसे, कैसे-कैसे हो गये,
कैसे-कैसे, वैसे-वैसे हो गये।
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कभी गुलशन में
रहते थे, कफस में अब गुजरती है,
खता सैयाद की क्या है हमारा आबो -दाना है।
1.कफस -
पिंजड़ा, कारावास 2. खता -
(i) दोष, अपराध, पाप, गुनाह
(ii) त्रुटि, भूल 3. सैयाद - बहेलिया, चिड़ीमार, आखेटक, शिकारी
4. आबो-दाना - अन्न-जल, जीविका, रोजी-रोटी
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कभी रहा हूँ मैं इस कदर बेसरो-सामाँ,
किसी की चश्मे-इनायत भी बार गुजरी है।
गमे-जहाँ को कभी हिम्मतों ने अपनाया,
कभी खुद अपनी मसर्रत भी बार गुजरी है।
-जाँ निसार अख्तर
1.बेसरो-सामाँ - बिना किसी सामान या
सामग्री,
जिन्दगी
के जरूरी सामान के बिना
2. चश्मे-इनायत – कृपादृष्टि,
नजरे-इनायत 3. बार -
भार,वजन,बोझ
4. मसर्रत -
खुशी, हर्ष, आन्नद
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