शेर-ओ-शायरी

मुज्तर मुजफ्फरनगरी (Muztar Muzaffarnagari)  

उठ गया कैस, उठ गई लैला,
पर्दा अब तक न उठा महफिल का।
 

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ऐसी किस्मत कहाँ कि जाम आता,
बू-ए-मय भी इधर नहीं आती।

1.
जाम - शराब पीने का पियाला, पानपात्र

2. बू-ए-मय - शराब या मदिरा की सुगंध
 

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