शेर-ओ-शायरी

  नाउम्मीदी  (Despondency) Next >>

अच्छा है डूब जाये सफीना हयात का,
उम्मीदो-आरजूओं का साहिल नहीं रहा।

-'असर' लखनवी

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अपना गम किस तरह से बयान करूँ,
आग लग जायेगी इस जमाने में।

-फिराक गोरखपुरी

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अभी जिन्दा हूँ लेकिन सोचता रहता हूँ खल्वत में
कि अब तक किस तमन्ना के सहारे जी लिया मैंने।

-'साहिर' लुधियानवी
1.खल्वत-जहाँ कोई दूसरा न हो, एकांत, तन्हाई
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अभी से क्यों छलक आये तुम्हारी आँख में आंसू
अभी छेड़ी कहाँ है, दास्ताने - जिन्दगी मैंने।

 

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