अच्छा है डूब
जाये सफीना हयात का,
उम्मीदो-आरजूओं का साहिल नहीं रहा।
-'असर' लखनवी
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अपना गम किस तरह
से बयान करूँ,
आग लग जायेगी इस जमाने में।
-फिराक गोरखपुरी
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अभी जिन्दा हूँ
लेकिन सोचता रहता हूँ खल्वत में
कि अब तक किस तमन्ना के सहारे जी लिया मैंने।
-'साहिर' लुधियानवी
1.खल्वत-जहाँ
कोई दूसरा न हो, एकांत, तन्हाई
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अभी से क्यों छलक
आये तुम्हारी आँख में आंसू
अभी छेड़ी कहाँ है, दास्ताने - जिन्दगी मैंने।
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