शेर-ओ-शायरी

 

           फराज अहमद (Faraaz Ahmad)
 

अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख्वाबों में मिलें,
 
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें ।
 

 

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