शेर-ओ-शायरी

 

                                 इकबाल (Iqbal)

सौ-सौ उम्मीदें बंधती है, इक-इक निगाह पर,
मुझको न ऐसे प्यार से देखा करे कोई।

 

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मेरी निगाह में वह रिन्द रिन्द नहीं साकी,
जो होशियारी और मस्ती में इम्तियाज करे।


1.रिन्द – शराबी 2.इम्तियाज - फर्क, अन्तर


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