कभी रहा हूँ
मैं इस कदर बेसरो - सामाँ,
किसी की चश्मे-इनायत भी बार गुजरी है।
गमे-जहाँ को कभी हिम्मतों ने अपनाया,
कभी खुद अपनी मसर्रत भी बार गुजरी है।
1.बेसरो-सामाँ - बिना किसी सामान
या सामग्री, जिन्दगी के जरूरी सामान के बिना 2. चश्मे-इनायत
– कृपादृष्टि, नजरे-इनायत
3. बार -
भार,वजन,बोझ 4. मसर्रत -
खुशी, हर्ष, आन्नद
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कल यही ख्वाब हकीकत में बदल जायेंगे,
आज जो ख्वाब फकत ख्वाब नजर आते हैं।
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कुछ जुर्म नहीं
इश्क जो दुनिया से छुपाएं,
हमने तुम्हें चाहा है, हजारों में कहेंगे।
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तेरी
हमदर्द नजरों से मिला ऐसा सुकूं मुझको,
मैं ऐसा सुकूं मरकर भी शायद पा नहीं सकता।
1.हमदर्द - दुख-दर्द बांटने वाली
या वाला
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