नजर में ढलके उभरते हैं दिल के अफसाने
ये और बात है कि दुनिया नजर न पहचाने
यह बज्म देखी है मेरी निगाह ने कि जहाँ
बगैर शम्अ भी जलते रहते हैं परवाने।
-सूफी तबस्सुम (सूफी
गुलाम मुस्तफा)
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फना होने में सोजे -शम्अ की मिन्नतकशी कैसी,
जले जो आग में अपनी उसे परवाना कहते हैं।
-नजर लखनवी
1. सोज - जलन, तपिश, ताप
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बिन जले शम्अ के परवाना जल नहीं सकता,
क्या करे इश्क अगर हुस्न की सबकत न करे।
-अब्राहम जौंक
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मंजिल में मुहब्बत की हस्ती ही रूकावट
है,
कल बज्म में कहता था जलता हुआ परवाना।
-माहिर-उल-कादिरी
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