मैं जिन्दगी का साथ
निभाता चला गया,
हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया।
जो मिल गया उसी को मुकद्दर समझ लिया,
जो खो गया मैं उसको भुलाता चला गया।
गम और खुशी में फर्क न महसूस हो जहाँ,
मैं दिल को उस मुकाम पै लाता चला गया।
बर्बादियों का सोग मनाना फिजूल था,
बर्बादियों का जश्न मनाता चला गया।
-'साहिर'
लुधियानवी
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मैं हंसता हूँ मगर ऐ दोस्त अक्सर हसने वाले भी,
छुपाए होते हैं दाग और नासूर अपने सीने में।
- 'अख्तर'
अंसारी
1.नासूर
- घाव जो हमेशा रिस्ता रहता है और कभी अच्छा नहीं होता।
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यह तो नहीं कि गम नहीं,
लेकिन मेरी आंख नम नहीं।
-'फिराक' गोरखपुरी
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यारब यह भेद क्या है कि
राहत फिक्र ने,
इन्साँ को और गम में गिरिफ्तार किया है।
-'जोश' मल्सियानी
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