शेर-ओ-शायरी

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दुनिया से यास जाने को दिल चाहता नहीं,
वल्लाह क्या कशिश है इस उजड़े दियार में।

-यगाना चंगेजी


1. वल्लाह - खुदा की कसम, ईश्वर की शपथ 2. कशिश - आकर्षण, दिलकशी, खिंचाव 3. दियार - स्थान, मुकाम
 

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न खिजाँ में है कोई तीरगी, न बहार में कोई रौशनी,
ये नजर-नजर के चराग हैं, कहीं जल गये, कहीं बुझ गये।

-'शायर' लखनवी


1. खिजाँ - पतझड़ की ऋत 2. तीरगी - अंधेरा, अंधकार


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पहलू-ए-गुल में खार भी है कुछ छुपे हुए,
हुस्ने-बहार देख तो दामन बचाके देख।

-दिल शहजहाँपुरी


1.पहलू - पार्श्व, बगल
 

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फूल वही, चमन वही, फर्क नजर - नजर का है,
अहदे-बहार में क्या था, दौरे-खिजाँ में क्या नहीं।

-'जिगर' मुरादाबादी


1. अहदे-बहार - बहार का मौसम 2. दौरे-खिजाँ - पतझड़ ऋतु

 

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