शेर-ओ-शायरी

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अपने वो रहनुमा हैं कि मंजिल तो दरकनार,
कांटे रहे - तलब में बिछाते चले गए।

-असर लखनवी

1.रहनुमा - मार्ग दिखाने वाला, प्रथ-प्रदर्शक
2. दरकनार - मंजिल तो दूर

 

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उन्हीं को हम जहाँ में रहरवे-कामिल समझते हैं,
जो हस्ती को सफर और कब्र को मंजिल समझते हैं।

-बर्क

1.रहरव - पथिक, बटोही, मुसाफिर
2. कामिल - (i) निपुण, दक्ष, होशियार, चमत्कारी
(ii) समूचा, सम्पूर्ण (iii) बिल्कुल, मुकम्मल, सर्वांगपूर्ण
 

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उन्हें सआदते-मंजिल-रसी नसीब क्या होगी,
वह पाँव जो राहे-तलब में डगमगा न सके।

-जिगर मुरादाबादी

1.सआदत - प्रताप, तेज, इकबाल
2. मंजिल-रसी - मंजिल की प्राप्ति, मंजिल तक पहुंच
3. राहे-तलब - रास्ते की खोज

 

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एक पल के रूकने से दूर हो गई मंजिलें,
सिर्फ हम नहीं चलते, रास्ते भी चलते हैं।

 

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