इब्तिदा में हर मुसीबत पर लरज जाता था
दिल,
अब कोई गम इम्तिहाने-इश्क के काबिल नहीं।
मुझको वो लज्जत मिली एहसास मुश्किल हो गया,
रहते-रहते दिल में, तेरा दर्द भी दिल हो गया।
-सिकन्दर अली वज्द
1. इब्तिदा - आरम्भ, शुरू
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इब्तिदा-ए-इश्क
है रोता है क्या,
आगे-आगे देखिए होता है क्या।
-मीरत की मीर
1.इब्तिदा - आरम्भ, शुरू
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इश्क की बर्बादियों को रायगां समझा था मैं,
बस्तियाँ निकली, जिन्हे वीरानियाँ समझा था मैं।
-जिगर मुरादाबादी
1.रायगां - व्यर्थ, बेकार
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इस तरह से तुमने क्यों देखा मुझे,
हर तमन्ना ख्वाब बनकर रह गई।
-सिकन्दर अली 'वज्द'
1.ख्वाब - सपना, स्वप्न
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