शेर-ओ-शायरी

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मुझे हर खाक के जर्रे पर यह लिक्खा नजर आया,
मुसाफिर हूँ अदम का और फना है कारवाँ मेरा।

-'असर' लखनवी
 

1.खाक - धूल, रज 2. ज़र्रा - (i) कण, अणु, बारीक रेज़ा (

ii) अति तुच्छ, बहुत ही हकीर 3.अदम - परलोक, यमलोक, जहाँ मनुष्य

 मर कर जाता है 4.फना - मृत्यु, मौत, मरण


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मेरी हस्ती शौके-पैहम मेरी फितरत इज्तिराब,
कोई मंजिल हो मगर गुजरा चला जाता हूँ मैं।

-'जिगर' मुरादाबादी


1.पैहम- निरंतर, लगातार 2. इज्तिराब- व्याकुलता, बेचैनी, बेताबी, आतुरता

 

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मेरे दर्द में निहाँ है वह निशाते - जाविदानी,
कि निचोड़ दू जो आहें तो टपक पड़े तबस्सुम।

-'नाजिश' प्रतापगढ़ी


1.निहाँ- छुपा हुआ, गुप्त 2. निशाते–जाविदानी- न खत्म होने

वाली खुशी 3. तबस्सुम - मुस्कान, मुस्कुराहट
 

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मेरे रोने का जिसमें हिस्सा है,
उम्र का वह बेहतरीन हिस्सा है।
 

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मैं जिन्दगी का साथ निभाता चला गया,
हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया।
जो मिल गया उसी को मुकद्दर समझ लिया,
जो खो गया मैं उसको भुलाता चला गया।
गम और खुशी में फर्क न महसूस हो जहाँ,
मैं दिल को उस मुकाम पै लाता चला गया।
बर्बादियों का सोग मनाना फिजूल था,
बर्बादियों का जश्न मनाता चला गया।

-'साहिर' लुधियानवी


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