गालियाँ पुरलुत्फ हैं जब आप की,
सैकड़ों ही दीजिए, दो-चार क्यों।
-साजिद झालावाड़ी
1.पुरलुत्फ -
मजेदार, आनन्ददायी, अतिसुखदाई
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गिरता है कोई आग
में क्या कीजिए मगर,
शबनम को आफताब की कुर्बत पसंद है।
-नातिक लखनवी
1.शबनम - ओस, आकाश-जल 2.आफताब -
सूरज
3. कुर्बत - सामीप्य, निकटता, नजदीकी
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गुफ्तगू उनसे होती, यह किस्मत कहाँ,
ये भी उनका करम है कि नजर आये।
-शकील बदायुनी
1.गुफ्तगू - बातचीत, वार्तालाप
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गुलशनपरस्त हूँ मुझे गुल ही नहीं पसंद,
कांटो से भी निबाह किये जा रहा हूँ मै।
यूँ जिन्दगी गुजार रहा हूँ तेरे बगैर,
जैसे कोई गुनाह किये जा रहा हूँ मै।
-जिगर मुरादाबादी
1.गुलशनपरस्त - गुलशन का पुजारी
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