शेर-ओ-शायरी

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रूखसत के वाकिआत का इतना तो होश है,
देखा किये हम उनको जहाँ तक नजर गई।
-मिर्जा गालिब


1.रूखसत -विदा, विदाई 2.वाकिआत -घटना,वृतांत, हाल, वकिआ का बहुवचन

 

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रोज कहता हूँ न जाऊँगा कभी उनके घर,
रोज उस कुचे में इक काम निकल आता है।

-मिर्जा गालिब


1.कुचा - गली

 

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रौनके-हस्ती है, इश्के -खानावीरां साज से,
अंजुमन बेशम्अ है, गर बर्क खिरमन में नहीं।

-मिर्जा गालिब

 

1.इश्के –खानावीरां - घर बर्बाद करने वाला इश्क
2.अंजुमन - महफिल 3.बर्क - बिजली, तड़ित, चपला
4.खिरमन - खलिहान जहाँ भूसा निकाला हुआ अन्न का ढेर हो

 

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लाऊँगा कहाँ से जुदाई का हौसला,
क्यों इस कदर मेरे करीब आ रहे हो।
-सहर सीतापुरी
 

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